Wednesday, July 2, 2008

परेशानी और कहानी

आप लोग सोच रहे होंगे इससे अच्छा कोई title नही मिला क्या ?सोचिये सोचने का अधिकार अब आप को पर title आप बदल नहीं सकते क्योंकि मैंने तो येही title रखा है|इससे आप को कोई परेशानी है तो कोई कहानी जरूर बनेगी 'after all 'परेशानी के कारण ही तो कहानी बनती है |अब देवदास और पारो के प्यार से देवदास के खडूस बाप को परेशानी थी तो कहानी बनी...उस पर फ़िर तीन-तीन फिल्में भी बनी और खूब चली भी अब सोचिये अगर उस खडूस बाप को परेशानी नहोती तो बनती क्या कहानी...बनती क्या फिल्में .....फ़िर तो भाईसाहब उनकी हो जाती शादी और बस ख़तम कहानी बन भी जाती तो कौन पड़ता मैं तो नहीं आप का आप जाने ! अगर रोमियो और जूलियट मिल जाते बिना किसी problem के तो होते इतने famous ? अरे अपने लोकल हीर-रांझा etc. को ही ले लीजिये अगर हीर की बात रांझा से बन जाती तो होती कहानी|
पर जब जब किसी भी कहानी में आती है परेशानी हम परेशानी को ही कोसते हैं...मनहूस न जाने कहाँ से मुहँ उठा के चली आई...पर घर जी अगर आप के सास बहु वाले serial में कोमोलिका , रमोला, सिन्दूरा न हो तो आप को भी अपनी हिरोइन को इतना भावः न दे अरे मामूली सी घर की कहानी पर कौन ध्यान देता है |'कहानी घर घर की ' अब् कोई जरा मुझे बताये किस घर में ऐसा होता है जैसा एकता मैया दिखाती हैं पर यहाँ भी है पार्वती को परेशानी ,तभी तो है ये घर घर की कहानी(?)!
अब ज़रा सोचिए ये नेता लोग नेतागिरी करते हैं तभी तो बनती है अखबार के प्रथम पन्ने की कहानी क्यूँके इन नेताओ की so called नेतागिरी से होती है अखबार के एडिटर को परेशानी रिपोर्टर को परेशानी |कोई खाने में मिलावट करता है,और कहीं लोग भूखों मर रहे हैं ,सब परेशां है और बनती है कहानी,खबरिया चैनल पर बिना बात का बतंगड़ कहानी,चाहे लेख़क की दिल चूने वाली इमोशनल कहानी,और कहाँ से inspiration लाये बही बन्दा आज के इस बेदर्द ज़माने में??
मुझे भी न ये परेशानी और कहानी का चोली दमन का साथ खटक रहा था,तभी तो लिकी ये बेमतलब कहानी,अब देखिये न मुझे लिख के कुछ मिला,न आप को पढ़ के, तो अब हो गए न आप भी परेशान??
तो बहिठे क्यूँ है?? उठाइए कागज़ कलम और लिख डालिए कोई कहानी !