Tuesday, June 24, 2008

ज़ख्म

वो बुड्ढा उस पॉश कलोनो की पक्की सड़क पे नंगे पाँव चला जा रहा है |बोझ उसकी उम्र को भी मात देता मालूम पड़ रहा है |फिर भी वो खुश है , आज रात वो और उसका परिवार पेट भर के खाना खा के सोयेगा |आख़िर सेठ ने 'पचास' रुपए का वायदा किया है|बुड्ढा सोचता हुआ चला जा रहा है |येही सोच कर मन hii मन खुश हो रहा है की थोडी सी दाल और चावल ले लेगा और थोड़ा सा दूध भी अपने मिन्ना के लिए|एक बार फिर उसे बोरी के बोझ का ख्याल आता है |
बस एक बार सेठ की कोठी तक पहुँच जाए फिर घर की तरफ़ दौड़ पड़ेगा|घर का ख्याल आते ही वो फिर से सपनों की दुनिया में पहुँच जाता है |सचमुच कितनी सुंदर होती है ये सपनों की दुनिया , भूख से कुलबुलाती आंतें , आंसूं अपनी दयनीय स्थिति पे,बस खिलखिलाहट ,मुस्कान,खुशी|यही खुशी एक अपनी बेटी के चेहरे पे दिख रही है,जो पेट भर खाने के बाद अंगुलियाँ चाट रही है |पास ही खड़ी उसकी पत्नी देख रही है , मुन्ना को एक टूटे पालने में झूलते हुए |वो उसके कोमल हाथ पे हाथ रख देता है और बस उससे ये कहने ही जा रहा है की देखा बिना भीख मांगे काम कर के भी पेट भरा जा सकता है |
तभी उसकी तंद्रा भंग करते हुए एक कार सर्रर्र से गुजरती है |बुड्ढा सपने से हकीकत में लौट आया है |कार में मदमस्त युवक शराब के नशे में चूर हो झूम रहे हैं|कार से तेज़ पाश्चात्य संगीत की धुन शांत सड़क पे कार के साथ साथ बहती चली जा रही है |सभी युवक भले घरों के मालूम पड़ते हैं |उन्ही में से एक की नज़र बुद्धे से मिलती है |बस क्षण भर के लिए |फिर गाड़ी आगे जाती है| काफ़ी आगे|
वही युवक गाड़ी से हाथ बाहर निकाल एक कांच की बोतल बाहर फेंकता है|कांच तेजी से ज़मीन से टकरा कर सैंकडो टुकडों में टूट जाता है मानो रेत से बना कांच उस ही रेत से मिलन की खुशी में तड़प के नाच उठा हो|इस सब से बेखबर दूर से रहा है वो बुड्ढा उस कांच के करीब और करीब|वो तो बस अपने पचास रुपए के जोड़-तोड़ हिसाब-किताब में लगा है ,जो उसे अभी तक मिले भी नही हैं|शाम घिर आई है,बुद्धे की नज़र भी कुछ कमज़ोर है |पर वो चला जा रहा है| पल-पल अपने पचास रुपए के निकट बढ़ते हुए |
तभी सूरज की आखिरी किरण को चीरती हुई एक चीख पूरी कालोनी में गूँज उठती है |बुद्धे के पैर से खून बह रहा है और उसकी आंखों से आंसू बह रहे हैं|साथ बह रहे हैं, वो सपने ,वो पचास रुपए , वो दूध वो चावल , उसका मुन्ना, उसकी बेटी, उसकी पत्नी, और बह रही है उसकी मेहनत ,सुंदर सपनों की दुनिया , वो मुस्कान, वो खुशी|जो बह नही गया है वो है दर्द |पर दर्द पैर से बढ़ कर दिल में हो रहा है|कांच पैर में चुभा है पर कोई टूटा सपना दिल के भीतर जा धंस गया है |
वो अब देर से पहुंचेगा ,तो सेठ देरी से आने के कारण पैसे काटेगा |शायद चार आना भी ना दे , पचास रुपए तो दूर की बात है|
फिर अपने परिवार का ख़याल कर दर्द से कराहता हुआ वह उठ पड़ता है |हिम्मत कर के फिर से चलहै , बोरा उठाये |बस आगे कोने पे ही तो है सेठ की कोठी| वह कुछ समय लगा के लड़खडाता सा सेठ की कोठी पे पंहुंच जाता है |
सेठ के साथ एक युवक भी खडा है |मालूम पड़ता है की अबभी ही दोनों में बहस हुई है |सेठ काफ़ी नाराज़ दीखता है |बोरी को एक तरपफ रख बुड्ढा सेठ के आगे हाथ फैला देता है |ऐसा करते हुए उसे स्वयं पे क्रोध जात है |भला मेहनत की कमाई के लिए भी कोई हाथ फैलाता है |पर देरी से आने के कारण पैसे काटने के डर से वो हाथ पीछे नही खीचता है |सेठ गुस्से बुदबुदाये जा रहा है |पैसे काटने की बात कह रहा है |बुड्ढा इधर-उधर देखने लगता है की शायद सीधे सेठ की तरफ देखना सेठ के गुस्से में इजाफा ना कर दे |तभी बुद्धे की नज़र लड़के पे पड़ती है और लड़के की बुद्धे पर |वे दोनों एक दूसरे को पहचान जाते हैं |क्षण भर की उस मुलाक़ात को वो भूल ही चले थे|अब वह उनके मन में ताज़ा हो जाती है |
लड़का शर्म से सर झूका लेता है ,क्योंकि वह जानता है की बुद्धे ने उसे उसके मित्रों को नशे में चूर देख लिया था |तब उसकी नज़र बुद्धे के लहूलुहान पैरों पे पड़ती है |कांच टूटने की आवाज़ लड़के कानों से होते हुए उसके भीतर समा उसे अन्दर से लहुलुहान कर देती है |उसके चेहरे के भाव बता रहे हैं की पाश्चत्य दुनिया के पीछे भागने में भी वो अपने कुछ संस्कार अभी तक नहीं भूला है |
अब वो और नीचे सर नहीं झुका सकता इसलिए पलट जात है |अब तक सेठ का बुदबुदाना कुछ कम हो गया है | फ़िर सेठ जेब से दस का नोट निकल के बुद्धे के फैलाये हाथों में रख देता है |और उस कमरे से चल देता है , बुड्ढा दर्द भरी नज़रों से दस रुपए को देखता है फिर जाने को मुड़ता है |तो लड़का उसे रोक के पैर में लगी चोट पे पट्टी करवाने को कहता है |
बुड्ढा ठिठक जाता है ,पहले उससे कभी इस आदर से बात नही की गई है |लड़का उसे कुर्सी पे बिठा देता है ,उसकी पट्टी करते हुए क्षमा याचना करता है |स्वयं द्वारा फेंकी गई शराब की बोतल के कारण उसका पैर ज़ख्मी होने की बात बताता है |
इस पर बुद्ध उसकी आंखों में झांकता है और कहता है की ' तुम्हारी बोतल से मेरा तो केवल पैर ज़ख्मी हुआ है ' इससे तुम्हारे पिता का दिलदर्द से और तुम्हारी आत्मा ग्लानी से ज़ख्मी होंगे, उन पर तो पट्टी भी की जा सकेगी| '
बुड्ढा फिर जाने को उठता है |इस बार लड़का उसे फिर रोकता है |लड़का जेब से एक नया हज़ार का नोट निकलता है और बुद्धे ही ओरबढ़ा देता है |बुद्धे ने इससे पहले कभी हज़ार का नोट नहीं देखा है |वो उस नोट को एक बार बस एक बा चूना चाहता है |पर अपने पर काबू पाते हुए कहता है की अपनी मेहनत के ही पैसे लेता हूँ |मुझे क्षमा करना |इस पर लाडका कहता कई की 'यह आप की मेहनत के ही हैं ,आपने मुझे ग्लानी से बचाया है ,दर्द सहा है, अपमान सहा है |उसके लिए ये तो बहुत कम हैं |
बुड्ढा लड़के का मन रखने के लिए नोट ले लेता है |अब बुड्ढा अपने घर की तरफ़ मुड़ता है ओर लड़का अपने घर की तरफ़ |दोनों मुस्करा रहे हैं |दोनों के ज़ख्म भर गए हैं |